Lekhika Ranchi

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रंगभूमि--मुंशी प्रेमचंद


एक दिन वह घबराई हुए विनय के पास आई, बोली-विनय, मैं बनारस जाऊँगी। मैं बड़े संकट में हूँ। रानीजी मुझे यहाँ चैन न लेने देंगी। अगर यहाँ रही, तो शायद जीवन के हाथ धोना पड़े, मुझ पर अवश्य कोई-न-कोई अनुष्ठान किया गया है। मैं इतनी अव्यवस्थित-चित्ता कभी न थी। मुझे स्वयं ऐसा मालूम होता है अब मैं वह हूँ ही नहीं, कोई और ही हूँ। मैं जाकर रानीजी के पैरों पर गिरूँगी। उनसे अपना अपराध क्षमा कराऊँगी और उन्हीं की आज्ञा से तुम्हें प्राप्त करूँगी। उनकी इच्छा के बगैर मैं तुम्हें नहीं पा सकती। और जबरदस्ती ले लूँ, तो कुशल से न बीतेगी। विनय, मुझे स्वप्न में भी यह आशंका न थी कि मैं तुम्हारे लिए इतनी अधीर हो जाऊँगी। मेरा हृदय कभी इतना दुर्बल और इतना मोहग्रस्त न था।
विनय ने चिंतित होकर कहा-सोफी, मुझे आशा है कि थोड़े दिनों में तुम्हारा चित्ता शांत हो जाएगा।
सोफी-नहीं विनय, कदापि नहीं। रानीजी ने तुम्हें एक महान् उद्देश्य के लिए बलि कर रखा है। बलि-जीवन का उपभोग अनिष्टकारक होता है। मैं उनसे भिक्षा मागँगी।
विनय-तो मैं भी तुम्हारे साथ चलूँगा।
सोफी-नहीं, नहीं, ईश्वर के लिए ऐसा मत कहो। मैं तुम्हें रानीजी के सामने न ले जाऊँगी। मुझे अकेले जाने दो।
विनय-इस दशा में मैं तुम्हें अकेले कभी न जाने दूँगा। अगर ऐसा ही है, तो मैं तुम्हें वहाँ छोड़कर वापस आ जाऊँगा।
सोफी-वचन दो कि बिना मुझसे पूछे रानीजी के पास न जाओगे।
विनय-हाँ, सोफी, यह स्वीकार है। वचन देता हँ।
सोफी-फिर भी दिल नहीं मानता। डर लगता है, वहाँ तुम आवेश में आकर कहीं रानीजी के पास न चले जाओ। तुम यहीं क्यों नहीं रहते?मैं तुम्हें नित्यप्रति पत्र लिखा करूँगी और जल्द-से-जल्द लौट आऊँगी।

विनय ने उसे तस्कीन देने के लिए अकेले जाने की अनुमति दे दी, लेकिन उनका स्नेह-सिंचित हृदय यह कब मान सकता था कि सोफिया इस अव्यवस्थित दशा में इतनी लम्बी यात्रा करे। सोचा, उसकी निगाह बचाकर किसी दूसरे डब्बे में बैठ जाऊँगा। उन्हें लौटकर आने की बहुत कम आशा थी। भीलों ने सुना, तो भाँति-भाँति के उपहार लेकर बिदा करने आए। मृग-चर्मों, बघनखों और नाना प्रकार की जड़ी-बूटियों का ढेर लग गया था। एक भील ने धनुष भेंट किया। सोफी और विनय, दोनों ही को इस स्थान से प्रेम हो गया था। निवासियों का सरल,स्वाभाविक, निष्कपट जीवन उन्हें ऐसा भा गया था कि उन लोगों को छोड़कर जाते हुए हार्दिक वेदना होती थी। भीलगण रो रहे थे और कह रहे थे, जल्द आना, हमें भूल न जाना। बुढ़िया भीलनी तो उन्हें छोड़ती ही न थी। सब-के-सब स्टेशन तक उन्हें पहुँचाने आए। लेकिन जब गाड़ी आई और वह बैठी, विनय से बिदा होने का समय आया, तो वह विनय के गले लिपटकर रोने लगी। विनय चाहते थे कि निकल जाएँ और किसी दूसरे डब्बे में जा बैठें, पर वह उन्हें छोड़ती ही न थी। मानो यह अंतिम वियोग है। जब गाड़ी ने सीटी दी, तो वह हृदय-वेदना से विकल होकर बोली-विनय, मुझसे इतने दिनों कैसे रहा जाएगा? रो-रोकर मर जाऊँगी। ईश्वर, मैं क्या करूँ?

विनय-सोफी, घबराओ नहीं, मैं तुम्हारे साथ चलूँगा।
सोफी-नहीं, नहीं, ईश्वर के लिए नहीं। मैं अकेली ही जाऊँगी।
विनय गाड़ी में आकर बैठ गए। गाड़ी रवाना हो गई। जरा देर बाद सोफिया ने कहा-तुम न आते, तो मैं शायद घर तक न पहुँचती। मुझे ऐसा ज्ञात हो रहा था कि प्राण निकले जा रहे हैं। सच बताना विनय, तुमने मुझ पर मोहिनी तो नहीं डाल दी है? मैं इतनी अधीर क्यों हो गई हूँ?
विनय ने लज्जित होकर कहा-क्या जाने सोफी, मैंने एक क्रिया तो की है। नहीं कह सकता कि वह मोहनी थी या कुछ और!
सोफी-सच?
विनय-हाँ, बिलकुल सच। मैं तुम्हारी प्रेम-शिथिलता से डर गया था कि कहीं तुम मुझे फिर से न परीक्षा में डालो।
सोफी ने विनय की गर्दन में हाथ डाल दिए और बोली-तुम बड़े छलिया हो। अपना जादू उतार लो, मुझे क्यों तड़पा रहे हो?
विनय-क्या कहूँ, उतारना नहीं सीखा, यही तो भूल हुई।
सोफी-तो मुझे भी वही मंत्र क्यों नहीं सीखा देते? न मैं उतार सकूँगी, न तुम उतार सकोगे। (एक क्षण बाद) लेकिन नहीं, मैं तुम्हें संज्ञाहीन न बनाऊँगी। दो में से एक को तो होश में रहना चाहिए। दोनों मदमत्ता हो जाएँगे, तो अनर्थ हो जाएगा, अच्छा, बताओ कौन-सी क्रिया की थी?
विनय ने अपनी जेब से वह जड़ी निकालकर दिखाते हुए कहा-इसी की धूनी देता था।
सोफी-जब मैं सो जाती थी, तब?
विनय-(सकुचाते हुए) हाँ, सोफी, तभी।
सोफी-तुम बड़े ढीठ हो। अच्छा, अब यही जड़ी मुझे दे दो। तुम्हारा प्रेम शिथिल होते देखूँगी, तो मैं भी यही क्रिया करूँगी।
यह कहकर उसने जड़ी लेकर रख ली। थोड़ी देर बाद उसने पूछा-यह तो बताओ, वहाँ तुम रहोगे कहाँ? मैं रानीजी के पास तुम्हें न जाने दूँगी।
विनय-अब मेरा कोई मित्र नहीं रहा। सभी मुझसे असंतुष्ट हो रहे होंगे। नायकराम के घर चला जाऊँगा। तुम वहीं आकर मुझसे मिल लिया करना। वह तो घर पहुँच ही गया होगा।
सोफिया-कहीं जाकर कह न दे!
विनय-नहीं, मंदबुध्दि है, पर विश्वासघाती नहीं है।
सोफिया-अच्छी बात है। देखें, रानीजी से मुराद मिलती है या मौत!

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